रोज़ा रखने की दुआ – दिल से जुड़ी एक कहानी
Roza Rakhne Ki Dua, मुझे अब भी याद है, जब मैं बचपन में पहली बार रोज़ा रखने बैठा था। घर में सबने कहा, “आज हमारा छोटा भी रोज़ेदार बनेगा।” मुझे बड़ी खुशी थी, पर साथ ही डर भी कि पूरा दिन भूखा-प्यासा कैसे रहूँगा? सुबह-सुबह अम्मी ने उठाकर सहरी कराई, लेकिन मैं इतना नींद में था कि खाने का आधा हिस्सा तो वैसे ही रह गया। अम्मी ने हँसते हुए कहा – “अरे बेटा, खाना तो पेट में जाएगा, नहीं तो दोपहर तक ही हाल खराब हो जाएगा।” और सच में, दोपहर होते-होते मुझे लगा जैसे दुनिया की सारी ताकत मुझसे निकल गई है।
लेकिन फिर अब्बू ने कहा – “बेटा, रोज़ा सिर्फ भूखा रहने का नाम नहीं है, बल्कि ये अल्लाह से जुड़ने का तरीका है। और इसका सबसे पहला कदम है सही दुआ से रोज़ा शुरू करना।”
उस दिन पहली बार मैंने “रोज़ा रखने की दुआ” पढ़ी। मुझे नहीं पता था कि ये दुआ क्या मायने रखती है, लेकिन जब मैंने अल्लाह से दिल से जुड़कर ये अल्फ़ाज़ दोहराए, तो पूरे दिन में एक अलग ही सुकून महसूस हुआ। भूख और प्यास तो लगी, पर दिल हल्का और सुकून से भरा था।
तो आज मैं आपसे वही चीज़ साझा करना चाहता हूँ – रोज़ा रखने की दुआ, उसका महत्व और वो एहसास जो हर रोज़ेदार के दिल में उतरता है।
रोज़ा क्या है और क्यों रखा जाता है?
सीधी सी बात है, रोज़ा सिर्फ खाने-पीने से दूर रहने का नाम नहीं। ये तो हमारी आत्मा को साफ करने का तरीका है। हम सब जानते हैं कि रमजान का महीना कितना खास होता है। इस महीने रोज़ा रखना सिर्फ एक फर्ज़ नहीं, बल्कि एक ऐसा तोहफ़ा है जिससे इंसान अल्लाह के और करीब होता है।
रोज़े में हमें सिर्फ खाना-पीना छोड़ना ही नहीं होता, बल्कि बुरी आदतों से भी बचना होता है। जैसे गुस्सा करना, झूठ बोलना, दूसरों की बुराई करना – ये सब रोज़े को कमजोर कर देता है। असल में रोज़ा हमें ये सिखाता है कि इंसान को अपने अंदर कंट्रोल लाना चाहिए।

अब जरा सोचिए, अगर हम सुबह से शाम तक भूखे-प्यासे रहते हैं, लेकिन किसी पर गुस्सा निकाल दिया, किसी का दिल दुखा दिया, तो क्या हमारे रोज़े का असली मकसद पूरा हुआ? यही वजह है कि रोज़ा रखने की शुरुआत एक दुआ से होती है, ताकि हमारा इरादा साफ रहे और दिल अल्लाह की तरफ जुड़ जाए।
रोज़ा रखने की दुआ (Sehri Ki Dua)
रोज़ा शुरू करने से पहले जो दुआ पढ़ी जाती है, उसे अरबी में ऐसे कहते हैं:
“وَبِصَوْمِ غَدٍ نَّوَيْتُ مِنْ شَهْرِ رَمَضَانَ”
इसका मतलब है:
“मैंने कल के रोज़े की नीयत की रमज़ान के महीने के लिए।”
अब आप सोच रहे होंगे, इतनी छोटी सी दुआ? हाँ, लेकिन यही छोटे अल्फ़ाज़ आपके पूरे दिन की नीयत तय करते हैं। जब आप ये दुआ पढ़ते हैं, तो आप अल्लाह से वादा करते हैं कि आप सिर्फ भूख और प्यास नहीं सहेंगे, बल्कि अपनी सोच और अपने कामों में भी पवित्र रहेंगे।
Roza Rakhne Ki Dua
आपने कभी सोचा है कि रोज़ा बिना दुआ के भी रखा जा सकता है। हाँ, हो सकता है। लेकिन फर्क क्या है? फर्क ये है कि दुआ दिल को एक दिशा देती है।
जैसे मान लीजिए आप सफर पर निकलते हैं। बैग तो पैक है, गाड़ी भी तैयार है, लेकिन अगर रास्ता ही न पता हो तो क्या आप सही जगह पहुँच पाएंगे? बिल्कुल नहीं। यही हाल रोज़े का है। दुआ उस नक्शे की तरह है जो आपको पूरे दिन सही रास्ते पर चलने में मदद करती है।
रोज़े की दुआ एक छोटी सी याद दिलाती है कि “ये दिन सिर्फ मेरे लिए नहीं, बल्कि अल्लाह के लिए है।” जब भी भूख लगे, प्यास सताए, या गुस्सा आए – यही दुआ दिल में ताकत भर देती है।

जब दुआ पढ़ना भूल जाएं तो क्या करें?
अब एक मज़ेदार किस्सा सुनिए। एक बार मैं सहरी करने में इतना बिज़ी था कि दुआ पढ़ना ही भूल गया। सुबह होते ही दिल में अजीब सा डर बैठ गया कि शायद मेरा रोज़ा कबूल नहीं होगा। लेकिन फिर अब्बू ने समझाया – “बेटा, रोज़े की नीयत तो दिल से होती है। अगर तूने दिल में ये ठान लिया कि आज मैं रोज़ा रखूँगा, तो बस वही काफी है।”
तो हाँ, दुआ पढ़ना सुन्नत है और ज़रूरी भी, लेकिन अगर कभी भूल जाएं तो परेशान होने की ज़रूरत नहीं। अल्लाह तो हमारे दिलों की नीयत को जानता है।
रोज़ा रखने का असली एहसास
सच बताऊँ, रोज़े का असली मज़ा भूखे रहने में नहीं, बल्कि उस सुकून में है जो इफ़्तार के वक्त दिल में उतरता है। जब पूरा दिन मेहनत के साथ गुजरता है, और शाम को एक खजूर और पानी से रोज़ा खोलते हैं – तो वो एहसास किसी जश्न से कम नहीं होता।
रोज़े की दुआ इसी एहसास को गहराई देती है। ये सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि दिल और अल्लाह के बीच की एक डोर है।
