“जब मैं खुद उलझा था – शादी, पसंद, और वो एक इशारा जो सब बदल गया…”
आपको एक किस्सा सुनाता हूँ। बहुत निजी है, लेकिन शायद आपके काम आ जाए। Istikhara Marriage Dua
कुछ साल पहले, मैं भी वहीं खड़ा था जहाँ शायद आप आज खड़े हो। शादी की बात चल रही थी, एक लड़की थी – समझदारी, अदब, सब कुछ था उसमें। मगर दिल में एक अजीब सी हलचल थी। जैसे कोई अंदर से कह रहा हो – “रुक जा ज़रा, सोच फिर कर।”
अब बताओ, भला ऐसा कैसे होता है? सामने सब अच्छा, फिर भी दिल में शंका? दिमाग कह रहा था हाँ, दिल ना। और तभी किसी बुज़ुर्ग ने कहा – “बेटा, Istikhara कर ले। खुदा से पूछ, वो ही बेहतरीन फैसला दिखाएगा।”
मैं तो थोड़ा डर गया पहले। सोचा – ये कोई बड़ा अमल है, उलझा हुआ होगा। पर सच्ची बताऊँ? जितना सुना था, उससे कहीं ज़्यादा आसान निकला।
“Istikhara – मतलब क्या है? और शादी में क्यों ज़रूरी?”
चलो पहले ये समझते हैं कि Istikhara होता क्या है। आसान भाषा में – जब आप किसी बड़े फैसले (जैसे शादी) को लेकर उलझन में हों, तो आप अल्लाह से सीधा मशविरा लेते हैं। एक खास दुआ पढ़ते हैं, दो रकात नमाज़ पढ़ते हैं, और फिर अल्लाह से अपने लिए बेहतर रास्ते की रहनुमाई माँगते हैं।
अब आप सोच रहे होंगे – क्या ये वाकई काम करता है?
मैं कहूँगा – हाँ, पूरे यकीन से। क्योंकि जब मैंने किया, तो जो शक था, वो रातों रात साफ हो गया। और जो रास्ता अल्लाह ने दिखाया, वो आज भी मेरे लिए सबसे सुकून वाला है।

“वो रात… और Istikhara की वो दुआ”
जिस रात मैंने इस्तिखारा किया, मुझे कुछ खास नहीं दिखा। हाँ, ये भी होता है। सबको ख्वाब नहीं आता। लेकिन जो सुकून दिल को मिला, वो पहले कभी नहीं था।
मेरी पढ़ी हुई दुआ यही थी:
اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْتَخِيرُكَ بِعِلْمِكَ، وَأَسْتَقْدِرُكَ بِقُدْرَتِكَ، وَأَسْأَلُكَ مِنْ فَضْلِكَ العَظِيمِ…
(बाकी दुआ भी बताएँगे, सब आसान तरीक़े से)
उसके बाद, अगले ही दिन, जिन बातों से मैं अंजान था, वो खुलकर सामने आ गईं। फैसले लेना आसान हो गया।
“आपको भी वही उलझन है?”
क्या आप भी इसी सोच में हैं – शादी की बात है, रिश्ता ठीक है या नहीं? दिल दुविधा में है?
सुनिए, मैं आपको कोई मौलवी या शेख बनकर नहीं समझा रहा। मैं बस वो इंसान हूँ जो आपके जैसी ही उलझन से गुज़रा है। और मैंने बस एक ही रास्ता आज़माया – Istikhara।
ना इसमें तावीज़ है, ना कोई लंबा चौड़ा टोटका। बस आप, आपकी नमाज़, और अल्लाह।
“Istikhara करने का आसान तरीका – मेरे तरीके से”
1. नियत साफ रखो।
कोई और सोच मत रखो, बस अल्लाह से बेहतरीन की दुआ करो।
2. दो रकात नमाज़ पढ़ो।
पहली रकात में सूरह फ़ातिहा के बाद कोई भी सूरह पढ़ सकते हो, दूसरी रकात में भी ऐसा ही।
3. फिर दुआ पढ़ो।
इस्तिखारा की दुआ याद नहीं? कोई बात नहीं, मोबाइल में देख लो, या किसी से लिखवा लो। दिल से पढ़ो, अल्फाज़ से नहीं।
4. फिर सो जाओ।
हाँ, बस। नींद में कुछ दिखे या ना दिखे, पर अगली सुबह का दिल कुछ और ही हल्का होगा।
“ख्वाब ना आए तो क्या इस्तिखारा नहीं हुआ?”
अब बहुत लोग पूछते हैं – “भाई, मैंने किया लेकिन ख्वाब तो कोई नहीं आया। क्या गलत किया?”
सुनो, ये कोई अल्लादीन का चिराग नहीं है कि दुआ पढ़ते ही ख्वाब में सब कुछ साफ-साफ दिख जाए। इस्तिखारा का मक़सद सिर्फ ख्वाब देखना नहीं है, असल चीज़ है दिल का सुकून और फैसले में आसानी।
मेरे साथ भी यही हुआ – ख्वाब नहीं आया, लेकिन अचानक कुछ बातें साफ दिखने लगीं। अंदर से ऐसा लगने लगा जैसे कोई कह रहा हो – “बस यही सही है।” और उस इशारे को मैं कभी नहीं भूला।
तो अगर आपको ख्वाब नहीं भी आता, तो परेशान मत हो। अल्लाह आपके दिल में ही जवाब डाल देता है।
“क्या बार-बार इस्तिखारा किया जा सकता है?”
कभी-कभी पहली बार में जवाब साफ नहीं मिलता, तो मन करता है फिर से करें। और हां, बिलकुल कर सकते हो।
मैंने खुद तीन रातें लगातार किया था। हर बार वही दुआ, वही नमाज़ – और हर बार दिल थोड़ा और साफ होता गया।
शर्त बस एक है – भरोसा रखो।
अल्लाह कभी देर कर सकता है, लेकिन जवाब ज़रूर देता है।
“शादी के लिए इस्तिखारा की सही दुआ (with Hindi meaning)”
अब बात करते हैं उस दुआ की, जो सबसे अहम है। Arabic में तो है ही, लेकिन मैं आपको इसका हिंदी मतलब भी बता देता हूँ, ताकि आप समझ पाओ कि आप अल्लाह से माँग क्या रहे हो:
Arabic (Original):
اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْتَخِيرُكَ بِعِلْمِكَ، وَأَسْتَقْدِرُكَ بِقُدْرَتِكَ، وَأَسْأَلُكَ مِنْ فَضْلِكَ العَظِيمِ…
Hindi Meaning (भावार्थ):
“हे अल्लाह! मैं तुझसे तेरे ज्ञान के अनुसार भलाई माँगता हूँ, तेरी शक्ति से तुझसे मदद माँगता हूँ, और तेरे असीम फज़ल से तुझसे कुछ माँगता हूँ। तू ही जानता है और मैं नहीं जानता, तू ही क़द्र रखता है और मैं नहीं रखता, और तू ही ग़ैब जानने वाला है…”
इस दुआ में आप अल्लाह से बस इतना कह रहे हो – “मुझे नहीं पता क्या सही है, लेकिन तुझे पता है। तो वही कर जो मेरे लिए अच्छा हो, चाहे मुझे समझ आए या ना आए।”
क्या बात है ना? दिल को छू लेने वाली दुआ है।
“किसके लिए करें इस्तिखारा – जब सामने वाला पसंद हो, मगर शंका हो?”
अब ज़रा दिल की बात करें?
कई बार कोई पसंद होता है – बातें होती हैं, मन जुड़ता है, लेकिन फिर भी कुछ डर लगता है। “क्या ये सही इंसान है?” या “क्या ये रिश्ता अल्लाह को मंज़ूर होगा?”
बस यहीं इस्तिखारा सबसे बड़ा हथियार बनता है।
मुझे याद है, एक बार ऐसा ही रिश्ता आया – लड़की बहुत समझदार, सब ठीक। मगर दिल में एक टीस थी। तो किया इस्तिखारा। और यक़ीन मानो, उसी हफ्ते वो रिश्ता ऐसे तरीके से ख़त्म हुआ जो मैं सोच भी नहीं सकता था। बाद में पता चला – अल्लाह ने वाकई मेरी हिफ़ाज़त की थी।

तो अगर आपको भी किसी को लेकर confusion है – परवरदिगार से बात करो। अपने दोस्तों से नहीं, फेसबुक से नहीं – सीधे उस से।
“क्या लड़की भी इस्तिखारा कर सकती है?”
ये सवाल भी बहुत बार आता है।
बिलकुल हाँ। अल्लाह के दरवाज़े सबके लिए खुले हैं। चाहे आप लड़की हों या लड़का, जवान हों या बुज़ुर्ग – सबको हक़ है अपने फैसले के लिए अल्लाह से रहनुमाई माँगने का।
और लड़कियों के लिए तो ये और ज़रूरी हो जाता है, क्योंकि अक्सर उन्हें समाज, घर, रिश्तेदारों की सोच के बीच दबना पड़ता है। ऐसे में अगर आप खुद भी सोच में हों, तो इस्तिखारा ज़रूर करें – ताकी आप भी अल्लाह की तरफ से इत्मीनान से फैसला ले सकें।
“किसी और से इस्तिखारा करवाना – सही है या नहीं?”
अक्सर लोग कहते हैं – “मैंने फलां मौलवी साहब से इस्तिखारा करवाया है।”
देखो, इसमें कोई बुराई नहीं अगर आप किसी नेक इंसान से दुआ करवाओ। लेकिन ध्यान रखना – असल इस्तिखारा आपकी खुद की नीयत और दुआ से होता है।
अल्लाह ने जो दिल और अक्ल आपको दी है, वही सबसे क़ीमती है। आप खुद दुआ करो, खुद बात करो अल्लाह से। ये कोई ऐसा अमल नहीं है जो सिर्फ किसी आलिम को आता हो। ये हर आम मुसलमान के लिए है।
हाँ, अगर कोई बुज़ुर्ग दुआ करें साथ में, तो और अच्छी बात है। लेकिन भरोसा अपने और अपने रब के रिश्ते पर रखो।
“कब करना चाहिए इस्तिखारा – सुबह, शाम या रात?”
अभी तक आपने सुना होगा कि इस्तिखारा सिर्फ रात में करना चाहिए। हाँ, रात सही वक़्त है – ख़ासतौर पर सोने से पहले, ताकि ख्वाब की उम्मीद हो।
लेकिन अगर आप दिन में भी करना चाहें, तो कर सकते हैं। कोई मनाही नहीं है।
बस शर्त यही है – दुआ के वक़्त आपका दिल साफ हो, फोकस अल्लाह पर हो, और मन में सिर्फ एक ही बात हो – ‘या रब, जो तू चाहे वही कर।’
मेरे एक दोस्त ने तो दफ़्तर में ब्रेक के दौरान ही किया था – और अल्लाह ने उसी दिन जवाब दे दिया, बिना किसी ख्वाब के।
तो टाइम नहीं, नीयत सबसे बड़ी चीज़ है।
“इस्तिखारा का जवाब कैसा आता है?”
अब सबसे दिलचस्प सवाल – “कैसे पता चले कि अल्लाह ने जवाब दे दिया?”
यहाँ कोई सीधा सा Yes या No नहीं आता। अल्लाह तो दिलों में डालता है सुकून। आपकी उलझन खुद-ब-खुद हल होने लगती है। कभी-कभी:
- आप उस फैसले की तरफ खिंचने लगते हैं
- या आप उस चीज़ से दूर होने लगते हैं
- कभी नया रास्ता खुलता है
- कभी वो रास्ता ही बंद हो जाता है
मेरे साथ ऐसा ही हुआ। मैंने शादी के लिए इस्तिखारा किया, और एक ऐसा सच सामने आया जिसने फैसला आसान बना दिया।
तो जवाब दिल में आता है, ख्वाब में नहीं।
“कितनी बार करना चाहिए इस्तिखारा?”
ये सवाल भी बड़ा आम है।
देखो, आप एक बार भी करो तो काफी है – अगर आपको दिल से इत्मीनान मिल जाए। लेकिन अगर उलझन बनी रहे, तो 3, 5 या 7 बार तक भी कर सकते हो।
कोई फिक्स नंबर नहीं है, पर याद रखो – जितनी बार भी करो, नीयत साफ रखो।
मैंने खुद तीन बार किया था, और हर बार मेरी सोच और रास्ता थोड़ा और साफ होता गया।
“इस्तिखारा करते हुए डर लग रहा है?”
यार, ये तो बहुत आम बात है। जब इंसान कोई बड़ा फैसला लेने वाला होता है, तो डर लगता है। दिल कहता है – “क्या पता क्या हो, अगर जवाब उल्टा आया तो?”
लेकिन यहीं तो भरोसे की बात है। अगर अल्लाह आपको किसी गलत रास्ते से बचा रहा है, तो वो इनकार नहीं कर रहा, वो आपकी हिफ़ाज़त कर रहा है।
डर लगे, तो भी करो। आँसू आए, तो बहने दो। लेकिन रुको मत। अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाओ, बोलो – “मेरी सोच कमज़ोर है, तू मजबूत बना।”
और देखना, जो जवाब मिलेगा – वो शायद आपको आज अच्छा न लगे, लेकिन कल आप शुक्र अदा करोगे।
“क्या इस्तिखारा सिर्फ शादी के लिए होता है?”
नहीं भाई, बिल्कुल नहीं।
इस्तिखारा एक ऐसा तोहफा है जो हर बड़े फैसले में आपकी मदद करता है:
- नौकरी बदली करनी है? इस्तिखारा करो।
- घर खरीदना है? करो।
- बिजनेस शुरू करना है? करो।
- दोस्ती निभानी है या नहीं? करो।
लेकिन हाँ, शादी सबसे बड़ा फैसला होता है – इसलिए ज़्यादातर लोग उसी के लिए करते हैं।
“इस्तिखारा और तक़दीर – क्या फर्क है?”
बहुत से लोग कहते हैं – “अगर तक़दीर पहले से लिखी है, तो फिर इस्तिखारा क्यों करें?”
सुनो, ये बिल्कुल वैसा है जैसे कोई कहे – “अगर मुझे भूख लगनी ही है, तो खाना क्यों खाऊँ?”
अल्लाह ने तक़दीर ज़रूर लिखी है, लेकिन उसने हमें दुआ और मेहनत का हक भी दिया है।
इस्तिखारा वो दरवाज़ा है जो अल्लाह ने खुद हमें दिया है ताकि हम उसके फैसलों को समझ सकें। अगर वो चाहता, तो सीधा सब दिखा देता। लेकिन उसने हमें इंतिख़ाब (चुनाव) और इख़्तियार (इच्छा) दी है।

तो जब आप इस्तिखारा करते हैं, तो आप अल्लाह से यही कह रहे होते हो – “मैं खुद नहीं समझ पा रहा, तू समझा दे।”
तक़दीर और इस्तिखारा एक-दूसरे के दुश्मन नहीं, साथी हैं।
“अगर जवाब उल्टा आया तो क्या करें?”
अब ये सबसे मुश्किल हिस्सा होता है।
मान लो, आप बहुत दिल से किसी से शादी करना चाहते हो। आप इस्तिखारा करते हो, और फिर वो रिश्ता टूट जाता है। क्या इसका मतलब ये कि आपकी मोहब्बत झूठी थी?
बिलकुल नहीं।
इसका मतलब सिर्फ इतना है कि अल्लाह ने कुछ ऐसा देखा जो आप नहीं देख पाए।
हाँ, ये तकलीफ देता है। आँसू आते हैं, दिल टूटता है। लेकिन कई बार सबसे बड़ी नेमत, ‘ना’ के रूप में मिलती है।
मैंने खुद एक बार ऐसा फैसला लिया जो उस वक्त बहुत दर्दनाक था। लेकिन आज जब मुड़कर देखता हूँ – अल्हम्दुलिल्लाह, अल्लाह ने बचा लिया।
तो अगर जवाब उल्टा आए, तो अल्लाह से नाराज़ मत होइए। शुक्र अदा कीजिए – क्योंकि उसने आपको गलत रास्ते से रोका।
“इस्तिखारा के बाद खुद को कैसे संभालें?”
ये भी एक अहम सवाल है।
इस्तिखारा के बाद अगर फैसला क्लियर हो जाए, तब भी इंसान थोड़ी देर तक पुराने ख्यालों में ही डूबा रहता है। तो खुद को कैसे संभालें?
यहाँ कुछ बातें हैं जो मेरे खुद के तजुर्बे से निकली हैं:
- नमाज़ कायम रखें – जब अल्लाह से सलाह ली है, तो उसकी इबादत में कमी मत आने दो।
- नेगेटिव लोगों से दूर रहो – जो कहते हैं, “क्या फायदा हुआ?” उनसे बचो।
- अल्हम्दुलिल्लाह कहो – चाहे जवाब हाँ हो या ना, अपने रब का शुक्रिया अदा करो।
- अपने फैसले पर डटे रहो – अगर अल्लाह ने रास्ता दिखाया है, तो उस पर चलने की हिम्मत रखो।
याद रखना – इस्तिखारा सिर्फ एक दुआ नहीं, अल्लाह के भरोसे की मोहर है।
“क्या कोई जल्दी वाला इस्तिखारा भी होता है?”
हाँ, कई बार हालात ऐसे होते हैं कि वक्त बहुत कम होता है। अगले दिन बात करनी है, शादी की तारीख तय करनी है – और दिल में कशमकश चल रही है।
ऐसे में आप जल्दी वाला इस्तिखारा कर सकते हो – लेकिन जल्दी का मतलब यह नहीं कि आप ध्यान या नीयत में कमी कर दो।
बस साफ दिल, दो रकात नमाज़ और दुआ। और फिर अल्लाह पर छोड़ दो।
मैंने खुद एक बार 24 घंटे से भी कम टाइम में इस्तिखारा किया था – और जवाब इतना साफ था कि मुझे खुद हैरत हुई।
तो जल्दी करो, लेकिन हल्के में मत लो।
“शादी का फैसला – अल्लाह की रहनुमाई से ही सबसे सच्चा होता है”
आखिर में एक ही बात कहूँगा – शादी जिंदगी का सबसे बड़ा मोड़ है। चेहरे बदलते हैं, हालात बदलते हैं, लेकिन जो दिल और दुआ से फैसला लिया गया हो, वो कभी धोखा नहीं देता।
इस्तिखारा एक ऐसा अमल है जो आपको अपने रब से जोड़ता है। उसमें ना दिखावा है, ना शर्तें – बस आप और आपका रब।
तो अगर आप शादी को लेकर उलझन में हो – तो आज रात ही इस्तिखारा करो। अल्लाह से बात करो जैसे बच्चे अपने अब्बा से बात करते हैं – सादगी से, मासूमियत से, प्यार से।
और फिर देखो, कैसे खुदा तुम्हारे लिए वो दरवाज़ा खोलता है – जो शायद अब तक बंद था।
निष्कर्ष (Conclusion):
ज़िंदगी में जब भी कोई बड़ा मोड़ आता है, खासकर शादी जैसा, तो दिल घबराता है। लेकिन अल्लाह ने हमें वो ताक़त दी है जो हर उलझन को आसान कर देती है – इस्तिखारा।
इस लेख में मैंने सिर्फ तरीका नहीं बताया, बल्कि अपना दिल भी आपके सामने खोला। क्योंकि मैं चाहता हूँ कि जो सुकून मुझे मिला, वो आपको भी मिले।
तो अगली बार जब शादी को लेकर उलझन हो – दोस्तों से पूछने से पहले, अल्लाह से बात करो। और याद रखो, इस्तिखारा सिर्फ एक दुआ नहीं, ये आपके रब की तरफ से सबसे बड़ा रहनुमा है।
FAQs:
1. इस्तिखारा करने के बाद क्या ज़रूरी है कि ख्वाब आए?
नहीं, ख्वाब आना ज़रूरी नहीं। असल चीज़ है दिल का सुकून और फैसले में अल्लाह की रहनुमाई।
2. क्या कोई और मेरे लिए इस्तिखारा कर सकता है?
हाँ, लेकिन सबसे बेहतर है कि आप खुद करें। क्योंकि दिल की बात आपसे बेहतर कोई नहीं जानता।
3. अगर जवाब ना मिले तो क्या करें?
फिर से इस्तिखारा करें, तीन या सात बार तक। साथ में दुआ और तवक्कुल बनाए रखें।
4. क्या इस्तिखारा हर बार शादी में काम आता है?
हाँ, अगर नीयत साफ हो और भरोसा हो तो इस्तिखारा हर बार आपकी मदद करेगा।
5. क्या लड़कियाँ भी खुद से इस्तिखारा कर सकती हैं?
बिलकुल। अल्लाह के दरवाज़े सबके लिए खुले हैं – लड़का हो या लड़की।
